Parshuram Gausewa Samiti धागोली आन्ध्रा virtue बेसहारा गौमाता के संरक्षण की पहल

Parshuram Gausewa Samiti: बेसहारा गौमाता के संरक्षण की पहल

गौमाता को सनातन धर्म में अत्यंत पूजनीय स्थान प्राप्त है। भारतीय संस्कृति में गाय को माता के रूप में सम्मान दिया जाता है, क्योंकि वह हमें दूध, गोबर, और अन्य कई लाभकारी वस्तुएं प्रदान करती है। लेकिन दुर्भाग्यवश, आज वही गौमाता सड़कों पर बेसहारा घूमने को मजबूर हैं। सरकार द्वारा गौसंरक्षण के लिए कई योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाता। इसी स्थिति को देखते हुए हिमाचल प्रदेश के जिला शिमला की तहसील चिरगांव के अंतर्गत आने वाली पंचायतों धागोली और आंध्रा के कुछ लोगों ने मिलकर “परशुराम गौसेवा समिति” (Parshuram Gausewa Samiti) की स्थापना की। इस समिति का उद्देश्य बेसहारा गौमाताओं को सुरक्षित आश्रय देना और उन्हें उचित देखभाल प्रदान करना है।

गौसेवा की आवश्यकता क्यों पड़ी?

आज के समय में जब हम तकनीकी और आर्थिक विकास की ओर बढ़ रहे हैं, तब भी हमारी संस्कृति और धर्म के प्रतीकों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। कई क्षेत्रों में गौमाता को बेसहारा छोड़ दिया जाता है, जहां वे सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो जाती हैं या जंगली जानवरों द्वारा मारी जाती हैं। इतना ही नहीं, कई बार खाने की कमी और ठंड के कारण भी उनकी मृत्यु हो जाती है।

चिरगांव तहसील के धागोली और आंध्रा पंचायतों में भी यही स्थिति थी। यहां बेसहारा गौमाताओं को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही थीं। कभी-कभी ये पशु किसानों के खेतों में घुसकर फसल खराब कर देते थे, जिससे किसान भी परेशान हो जाते थे। लेकिन इन्हें मारना या नुकसान पहुँचाना भी पाप माना जाता है। ऐसे में इन पशुओं के लिए एक सुरक्षित स्थान की आवश्यकता थी, जहां उन्हें सही देखभाल मिल सके। इसी सोच के साथ परशुराम गौसेवा समिति की शुरुआत हुई।

Gau Sewa

परशुराम गौसेवा समिति की स्थापना और उद्देश्य

परशुराम गौसेवा समिति की स्थापना एक पवित्र उद्देश्य के साथ की गई थी—बेसहारा गौमाताओं को आश्रय देना, उनकी उचित देखभाल करना और उन्हें सम्मानजनक जीवन प्रदान करना। इस समिति के मुख्य उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. बेसहारा और बीमार गौमाताओं के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल तैयार करना।
  2. गौमाताओं के भोजन और चिकित्सा की व्यवस्था करना।
  3. स्थानीय प्रशासन से मदद प्राप्त कर गौसेवा को संगठित करना।
  4. गौसंरक्षण और गौसेवा के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना।
  5. गौशाला का संचालन और इसमें और अधिक सुविधाओं का विस्तार करना।

समिति के प्रयास और चुनौतियाँ

समिति के सदस्यों ने अपनी व्यक्तिगत जमीन पर गौशाला बनाने की शुरुआत की। धागोली पंचायत के घनश्याम तायल जी, जो समाज सेवा के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने अपनी जमीन पर इस समिति को एक अस्थायी शेड बनाने की अनुमति दी। इसके बाद समिति के अन्य सदस्यों ने इस आश्रय स्थल के निर्माण में योगदान दिया।

गौशाला बन जाने के बाद भी समस्या समाप्त नहीं हुई। यहां लाने के लिए गौमाताओं का चयन करना भी एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि संख्या अधिक थी और संसाधन सीमित। समिति ने निर्णय लिया कि सबसे पहले उन गायों को प्राथमिकता दी जाएगी जो अधिक वृद्ध, बीमार, या अत्यधिक कमजोर थीं। जो पशु स्वयं अपनी रक्षा करने में असमर्थ थे, उन्हें गौशाला में रखा गया। लेकिन इतनी छंटाई के बाद भी गौशाला में 20 से 25 गौमाताओं को रखा गया।

अब सबसे बड़ी समस्या उनके भोजन और चिकित्सा की व्यवस्था करने की थी।

सरकार की उदासीनता और समिति का आत्मनिर्भर प्रयास

समिति ने गौमाताओं के चारे और अन्य आवश्यक संसाधनों के लिए प्रशासन से मदद की गुहार लगाई। वे SDM रोहड़ू, तहसीलदार चिरगांव, पशु चिकित्सालय रोहड़ू और चिरगांव तक पहुँचे, लेकिन हर जगह से केवल आश्वासन ही मिला। कोई ठोस मदद नहीं मिली। प्रशासन की इस उदासीनता के बावजूद समिति के सदस्यों ने हार नहीं मानी। सभी सदस्यों ने मिलकर आर्थिक योगदान दिया और जितना संभव हो सकता था, उतनी धनराशि एकत्र कर गौमाताओं के लिए आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था की।

ठंड के मौसम में इन बेसहारा गायों के लिए गर्म स्थान और चारे की व्यवस्था करना सबसे महत्वपूर्ण था। समिति ने अपने सीमित संसाधनों से इसे पूरा किया, लेकिन यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है।

गौसेवा में समाज की भागीदारी आवश्यक

परशुराम गौसेवा समिति का मानना है कि यदि समाज का हर व्यक्ति इस नेक कार्य में थोड़ा-थोड़ा योगदान दे, तो यह समस्या बड़ी आसानी से हल हो सकती है। गौमाता हमारी संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य भी है। यदि हम इस ओर ध्यान न दें, तो आने वाली पीढ़ियों को हमारी संस्कृति और धर्म के मूल सिद्धांतों को समझाने में कठिनाई होगी।

समिति से जुड़ें और सहयोग करें

यदि आप भी इस पवित्र कार्य में सहयोग करना चाहते हैं, तो आप समिति से जुड़ सकते हैं। आप किसी भी रूप में योगदान दे सकते हैं:

  1. आर्थिक सहायता: गौशाला में भोजन, चिकित्सा और अन्य संसाधनों के लिए धनराशि दान करें।
  2. शारीरिक सहायता: गौशाला में स्वयंसेवक के रूप में काम करें।
  3. चारा और अन्य सामग्री दान करें: यदि आप किसान हैं, तो घास और अन्य खाद्य पदार्थ दान कर सकते हैं।
  4. समाज में जागरूकता फैलाएं: अपने मित्रों और परिवार को इस नेक कार्य के बारे में बताएं और उन्हें भी गौसेवा के लिए प्रेरित करें।

निष्कर्ष

परशुराम गौसेवा समिति का यह प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है। सरकार की उदासीनता के बावजूद, समिति ने अपने सीमित संसाधनों से गौमाताओं के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बनाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। अब यह हम सभी की ज़िम्मेदारी बनती है कि हम इस पहल का समर्थन करें और गौसेवा के इस पवित्र कार्य में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। यदि हर व्यक्ति अपने स्तर पर थोड़ा योगदान करे, तो निश्चित रूप से बेसहारा गौमाताओं की समस्या को पूरी तरह से समाप्त किया जा सकता है।

यदि आप भी इस पवित्र कार्य में सहयोग करना चाहते हैं, तो कृपया अपनी सहायता प्रदान करें और इस नेक कार्य का हिस्सा बनें।

Parshuram Gausewa Samiti

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