Most Powerful Hindu Gods 4 भाई महासू जम्मू और कश्मीर में उन्हें महेश के रूप में माना जाता है, जबकि नेपाल में उन्हें मस्तो के रूप में माना जाता है। इस से हमें पता चलता है कि महासू देवता का प्रभुत्व पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र और पूर्वी हिमालयी क्षेत्र में भी मौजूद था। देवत्व में महासू देवता न केवल मनुष्यों के आराध्य देव हैं, बल्कि वे असंख्य देवी-देवताओं पर भी सर्वोच्च शासन करते हैं। महासू या मस्तो पूजा की उत्पत्ति संभवतः माज़्दा देवता मतलब एक सर्वोच्च इंडो-ईरानी देवता की पूजा से हुई थी, जब इंडो-ईरानी लोग हिमालयी क्षेत्रों की ओर चले गए तो उन्होंने अपने देवता माज़्दा की पूजा यहाँ करनी शुरू की।
समय-समय पर माज़्दा धर्म ने हिमालयी क्षेत्र के अनुसार खुद को बदलना शुरू कर दिया और इस तरह मस्तो, महासू और महेश के नाम का निर्माण हुआ। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में उन्हें अलग-अलग रूपों और अलग-अलग नामों से पूजा जाता है जो है बासिक महासू, पवासी महासू, बौठा महासू और चालदा महासू हैं, जो कि भगवान शिव के ही रूप माने गए हैं। इनमें बासिक महासू सबसे बड़े हैं, बौठा महासू उनसे छोटे पवासी महासू उनसे छोटे और चालदा महासू उनके छोटे भाई हैं।
इन महाशक्तियों का वर्णन 1827 ई. में ब्रिटिश काल में भी देखने को मिलता है
महासू देवता का धर्मतंत्रीय शासन, लोगों और स्थानीय शासकों को स्वीकार्य था, परन्तु ब्रिटिश प्राधिकारियों द्वारा इसे पसंद नहीं किया गया। उनके एक अधिकारी मेजर यंग को महासू देवता का अधिकार बड़ी बाधा लगा। इसलिए 1827 ई. में ब्रिटिश नियंत्रण वाले क्षेत्र के भूमि बंदोबस्त के दौरान उन्होंने महसूस किया कि महासू का अपने बड़े दल के साथ देवता के रूप में बारह साल का पारंपरिक प्रवास आम लोगों के लिए अत्यधिक शोषणकारी था।
इस प्रथा की जाँच करने के लिए यंग ने एक सभा में एक संक्षिप्त आदेश पारित किया जिसमें महासू और उनके उप सेवकों ( बीरों ) को जौनसार और बावर परंगना से निर्वासित कर दिया गया। लेकिन लोगों द्वारा देवता के निर्णय को हमेशा अंतिम और अपरिवर्तनीय माना जाता है। जिस कारन आदेश का उतना प्रभाव नहीं हुआ !
Most Powerful Hindu Gods
हुना भट्ट और महासू भाइयों की कहानी बहुत ही दिलचस्प है जिसे बारे में आपको किसी अगले ब्लॉग में बताऊंगा की कैसे ये देवता कश्मीर से हिमाचल और उत्तराखंड में आये !
कश्मीर से उतराखंड देवता कैसे आये इस बारे में किसी अलग आर्टिकल में बात करेंगे आज हम बात करेंगे उत्तराखंड से हिमाचल प्रदेश के रोहल में कैसे आये महाशिव पवासी महाराज। जब इस महाशक्तियों ने उत्तराखंड में सभी राक्षसों का अंत किया तो उसके बाद सभी देवता वहीँ आस पास के इलाके में विराजमान हो गए। पौराणिक कथा के अनुसार देवता साहब पवासी महाराज उत्तराखंड से हिमाचल की पहाड़ियों में शाटुल नामक स्थान में पहुंचे और वहां से थोड़ा आगे पोखरी नमक स्थान में पहुंचे पवासी महाराज को ये जगह अच्छी लगी किस कारन देवता साहब विशालकाय सर्प के रूप में वहां आराम करने लगे।
उसी दौरान कुछ दिनों बाद जाबाल नारायण जी जो की जिला किनौर से अपना साम्राज्य बढ़ाने अपने भाई रामणी नारायण के कहे अनुसार चल रहे थे वे भी वही आ पहुंचे जहाँ पावसी महाराज आराम कर रहे थे। जाबाल नारायण से पहले एक और शक्ति किलबालु महाराज भी वहां पहुंचे हुए थे ये दोनों शक्तियां पवासी महाराज के सर्प रूप को पार करने में असमंजस में थे , कारण यह था की अगर ये दोनों देवता पवासी महाराज के सर के ऊपर होते जाते तो उन्हें डर था कहीं ये शक्ति क्रोधित न हो जाये और यदि उनके पैर होते जाते तो उनसे छोटे कहलाते।
जिस कारन विष्णु नारायण ने भँवरे का रूप धारण कर देवता पवासी महाराज के कान में गुंजन की जिस कारण देवता साहब की नींद खुल गई और तीनो देवता वहां से साथ चल पड़े कुछ दूर पर जाते ही इन तीनो को एक भव्य मंदिर और 12 गाओं थे उस वक्त इन 12 गांव में झाखड़ु देवता को पूजा जाता था और यहाँ मेला मनाया जाता था जिसे पालू के मेले के नाम से जाना जाता था उस वक्त इस इलाके में कही भी मेला नहीं मनाया जाता था।
पहले था किसी और देवता का राज
तीनो देवताओ को साम्राज्य सस्थापित करना था जिस कारण पहली बाधा झाखड़ु देवता थे इसलिए इन देवताओं ने उस गांव में ज़ोर गोली नमक महामारी अपनी शक्तियों से उत्पन की जिस कारण 12 गाओं के सभी मनुष्य मारे गए और केवल एक ही महिला बची वो इसलिए बची क्यूंकि वह प्रेगनेंट थी क्यूंकि उसका इस देवताओ ने पाप माना ! और जो यहाँ पर जाखड़ु देवता थे उनको उनके ही दीपक से आग लगा कर जला दिया। जिस कारण पवासी महाराज यहीं बस गए और जाबल नारायण आगे की और बड़े।
पौराणिक कथा
एक और कथा के अनुसार रोहल की एक जगह से दोनों देवताओ ने तीर फेंका और कहा जहाँ तक जिसका तीर जायेगा वो उसका साम्राज्य पवासी महाराज ने सनगाड़ तक और जब्बल नारायण ने सुंधा घिड़की तक तीर फेंका जिस कारण वे उनके साम्राज्य हो गए। आज भी जाबल नारायण और पावसी महाराज बहुत अच्छे मित्र है और एक दूसरे के कार्य में अपनी भगीदारी अवश्य देते है जाबल नारायण के बारे में ज्यादा पड़ने के लिए क्लिक करें
उस वक्त पवासी महाराज को पूजने वाला और उनकी सेवा करने और वव्यवस्था करने वाला कोई नहीं था जिस कारण उत्तराखंड के थड़ियार से उन्होंने अपने साथ 1 मनुष्य (भंगाण,बांशा,मेकटू) को लाया जिसे बजीर के रूप में जाना गया। कहा जाता है की पवासी महाराज को यह बाज़िर उनके भाइयों द्वारा उनके साथ भेजा गया था जिसका मुख्या कार्य देवता की पूजा पे लगने वाले सामान की उपलब्धाता देवता साहब के रहने का बंदोबस्त और देवता साहब की प्रजा को देवता साहब के आदेश और देवता साहब के आदेशों को उनकी प्रजा तक पहुँचाने का था
अभी भी देवता साहब का सारा कार्य बाज़िर द्वारा देखा जाता है लेकिन समय के साथ बाज़िर नाम को मोहतमीन नाम में बदल दिया गया। आज भी रोहल में देवता साहब का कार्य वही बाज़िर सँभालते है जो देवता साहब के साथ देवता साहब के मूल निवास से साथ आये थे। भी इस बात के पुख्ता सबूत है