हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों में पाई जाने वाली प्रमुख Jadi Butiyan और उनके उपयोग
क्या आप जानते हैं कि हिमाचल प्रदेश की ऊँची-ऊँची पहाड़ियों और घने जंगलों में कुछ ऐसी दुर्लभ Jadi Butiyan (Rare Medicinal Herbs) पाई जाती हैं, जिनसे सैकड़ों बीमारियों का इलाज किया जा सकता है? 🌿💊
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यहाँ आपको ऐसी प्राकृतिक औषधियाँ (Herbal Medicines) मिलती हैं, जो डायबिटीज, कैंसर, गठिया, हड्डियों के दर्द, कमजोर इम्यूनिटी और थकावट जैसी बड़ी-बड़ी बीमारियों को जड़ से खत्म करने की ताकत रखती हैं।
गुर्च (Giloy) – अमर बेल

- उपयोग:
- बुखार, सर्दी-जुकाम, वायरल इंफेक्शन के लिए अत्यधिक प्रभावी।
- डायबिटीज और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए उपयोगी।
- पाई जाने वाली ऊंचाई:
- 500 मीटर से 1500 मीटर तक।
- विशेषता:
- इसे “अमृता” यानी अमरता देने वाली जड़ी-बूटी कहा जाता है।
- हिमाचल के निचले पहाड़ी क्षेत्रों और जंगलों में यह बेल के रूप में पाई जाती है।
कुटकी (Kutki) – लीवर और पाचन तंत्र के लिए वरदान

- उपयोग:
- लीवर रोग, पाचन तंत्र, अपच, एसिडिटी, फैटी लीवर, हेपेटाइटिस के इलाज के लिए।
- खून साफ करने और त्वचा रोगों में अत्यधिक लाभदायक।
- पाई जाने वाली ऊंचाई:
- 2700 मीटर से 4500 मीटर।
- विशेषता:
- यह दुर्लभ जड़ी-बूटी है और अक्सर हिमाचल के ऊँचे पहाड़ों पर मिलती है।
- खासकर किन्नौर, लाहौल-स्पीति और चंबा में यह पाई जाती है।
- इसे लेने से लीवर का उपचार और इम्यूनिटी मजबूत होती है।
अतिस (Atis) – बच्चों की बीमारियों के लिए अमृत

- उपयोग:
- बुखार, उल्टी, दस्त, अपच, पीलिया, संक्रमण के लिए लाभकारी।
- बच्चों के रोगों के लिए इसे अमृत माना जाता है।
- पाई जाने वाली ऊंचाई:
- 2700 मीटर से 4500 मीटर।
- विशेषता:
- इसे हिमालय क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है।
- विशेषकर लाहौल-स्पीति और किन्नौर में यह आसानी से मिलती है।
- बच्चों के पाचन तंत्र को ठीक करने के लिए इसे औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है।
शिलाजीत (Shilajit) – ऊर्जा और ताकत बढ़ाने वाली औषधि

- उपयोग:
- शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बढ़ाने के लिए।
- कमजोरी, हड्डियों का दर्द, पुरुषों की समस्याएं, मानसिक तनाव में फायदेमंद।
- शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाकर थकान दूर करता है।
- पाई जाने वाली ऊंचाई:
- 3500 मीटर से 5000 मीटर।
- विशेषता:
- यह हिमालय की ऊँची चोटियों में चट्टानों के बीच से निकलने वाला प्राकृतिक पदार्थ है।
- हिमाचल के किन्नौर, लाहौल-स्पीति और रोहतांग पास के आसपास यह मिलता है।
- यह शरीर के अंदर 60 से अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
धूप (Dhoop) – प्राकृतिक धूपबत्ती बनाने का पौधा
- उपयोग:
- इस पौधे से निकलने वाला गोंद धूपबत्ती, हवन सामग्री, आयुर्वेदिक तेल और औषधि बनाने में काम आता है।
- यह शुद्ध वायु प्रदान करने के लिए उपयोगी है।
- पाई जाने वाली ऊंचाई:
- 2000 मीटर से 4000 मीटर।
- विशेषता:
- यह विशेष रूप से हिमाचल के किन्नौर, चंबा और मनाली क्षेत्र में पाया जाता है।
- स्थानीय लोग इसे सुखाकर हवन सामग्री के रूप में उपयोग करते हैं।
- यह वातावरण को शुद्ध करने और नकारात्मक ऊर्जा दूर करने के लिए उपयोगी है।
बनक्शा (Banafsha) – खांसी और गले के रोगों का इलाज
- उपयोग:
- खांसी, गले में खराश, गला बैठना, बुखार, सिरदर्द, साइनस के लिए अत्यधिक लाभदायक।
- शरीर की गर्मी को कम करने के लिए उपयोगी।
- पाई जाने वाली ऊंचाई:
- 1500 मीटर से 3000 मीटर।
- विशेषता:
- यह पहाड़ी क्षेत्रों में ठंडी जलवायु वाले स्थानों पर मिलता है।
- विशेषकर चंबा, किन्नौर, शिमला, मनाली और कुल्लू में पाया जाता है।
- इसे चाय के रूप में उबालकर पीने से सांस संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।
नागदौन (Nagdaun) – गठिया और हड्डियों के दर्द के लिए औषधि
- उपयोग:
- गठिया, जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, हड्डियों में कमजोरी के लिए अत्यधिक लाभदायक।
- त्वचा रोगों के लिए भी उपयोग किया जाता है।
- पाई जाने वाली ऊंचाई:
- 1500 मीटर से 3000 मीटर।
- विशेषता:
- यह हिमाचल के कुल्लू, चंबा, मनाली और धर्मशाला के पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है।
- इसे सुखाकर तेल बनाया जाता है, जो जोड़ों के दर्द में अत्यधिक उपयोगी है।
तालीसपत्र (Talispatra) – खांसी, दमा और सांस के रोगों का इलाज
- उपयोग:
- खांसी, दमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों की बीमारी में अत्यधिक लाभदायक।
- सांस की नली को साफ करने और कफ निकालने में मदद करता है।
- पाई जाने वाली ऊंचाई:
- 2500 मीटर से 4000 मीटर।
- विशेषता:
- यह विशेषकर चंबा, किन्नौर और शिमला के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है।
- इसका पत्ता सुखाकर चाय या काढ़े के रूप में उपयोग किया जाता है।
अंतिम विचार
👉 हिमाचल प्रदेश के ऊंचे और ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली ये Jadi Butiyan स्वास्थ्य के लिए अमूल्य खजाना हैं।
👉 इनमें से कई Jadi Butiyan अब दुर्लभ हो चुकी हैं और इनकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजारों में लाखों रुपये प्रति किलो है।
👉 अगर इनका सही उपयोग किया जाए, तो यह कई खतरनाक बीमारियों का प्राकृतिक इलाज कर सकती हैं।