हिमाचल में काफ़ी प्रकार के अनाज, फल, सब्जियों की खेती की जाती है लेकिन सबसे ज्यादा यहां सेब उगाया जाता है हिमाचल प्रदेश में सेब की आर्थिकी 5400 करोड़ के करीब है। सेब से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है। जैसे की नेपाल से आए लोगों द्वारा सेब के तोलिए , खाद , गोबर , सेब की पेटियों का ढुलान किया जाता है ।
साथ ही इन दौरान सेब की पेटियों को ले जाने का कार्य गाड़ियों एवम ट्रैकों में किया जाता है जिस से उन्हे भी रोजगार प्राप्त होता है और इनके साथ कार्टन इंडस्ट्री, ओर पेटी में सेब को पेक करने का काम बिहार एवं बहरी राज्यों से आए व्यक्तियों द्वारा किया जाता है ।
इसके साथ जिस जगह पर और जिस ग्रेडिंग मशीन में सेब ग्रेड किया जाता है उसे भी इस कार्य से रोजगार प्राप्त होता है इसलिए सरकार को भी हिमाचल की आर्थिकी को बड़ाने में लगे बागवानों का सहयोग करना चाहिए ।
हिमाचल प्रदेश में में इस साल बीते वर्ष की तुलना में ज्यादा सेब के उत्पादन का अनुमान है. बागवानी विभाग के अनुसार, इस साल प्रदेश में 2 करोड़ 91 लाख के आज पास सेब की पेटी मार्केट में आने का अनुमान है, जोकि पिछले साल की तुलना में 80 लाख से ज्यादा है। राज्य सरकार ने किसानों के साथ मिलकर फैसला किया है कि इस साल केवल यूनिवर्सल कार्टन में सेब बिकेगा।
सेब के भाव
लो हाइट पर जल्दी सेब आने की वजह से सेब मार्केट में जुलाई में ही पहुंच जाता है जिस कारण सेब के भाव आसमान को छू जाते है जिसे देख अन्य बागवान भी अपने सेबों को समय से पूर्व ही निकाल देते है जिस से बड़ी हुई मार्केट में कच्चा सेब भी अच्छे भाव में बिक जाता है जिस कारण आने वाले समय मतलब जुलाई के बाद के समय में सेब के दाम घर जाते है ।
क्या रणनीति हो
सरकार अगर चाहे तो सेब के रेट निर्धारित कर सकती है अगर अच्छी क्वालिटी का सेब जुलाई में 150 रुपए किलो बिकता है तो वही सेब सितंबर में भी 150 रुपए किलो ही बीके तो मार्केट भी स्टेबल रहेगी और लोग भी सेब की क्वालिटी बनने का इंतजार करेंगे जिस से केमिकल फ्री सेब हर भारतीय को मिल पाएगा।
बागवानों को क्या मिल रहे सेब के दाम
जैसा की मेने बताया जुलाई में सेब की 1 पेटी 3000 से 4500 रुपए के आस पास बिकती है और बात करे आज की 1/9/2024 की तो अभी वही क्वालिटी वाला सेब 1000 से 2000 रुपए तक बिक रहा है जिस से की आप भी अनुमान लगा सकते है की कितनी ज्यादा गिरावट देखने को मिल रही है
सेब व्यापार में मेरा खुद का अनुभव
में भी एक बागवान हूं में हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से शहर चिरगांव का रहने वाला हूं हमारी आजीविका का साधन केवल सेब है । अगर सेब किसी साल नही होते या फिर आड़ती ( बिचौलिए जो हमारा सेब आगे बेचते है) हमारा पैसा नही देता हो साल गुजारना मुश्किल हो जाता है क्यों की यह काम नोकरी की तरह नही है । इसमें तो सेब लगने से पहले सेब की कटिंग , खाद, गोबर, स्प्रे, सारा खर्चा लोन पर चलाना पड़ता है । अगर बागवानों को उनका पैसा सही समय पर नहीं मिलेगा तो इसका असर अगले साल की फसल पर पड़ता है ।
fraud with farmers में भी अपना सेब पहले लोकल मंडी रोहरु में बेचता था रोहरु में बहुत से ऑप्शन है मतलब बहुत से बिचौलिए है जो हमारा सेब आगे खरीदारों को बेचते है जिसका वो कमीशन लेते है । वैसे ही में भी सबके पास सेब बेचता था लेकिन 1 व्यक्ति ( रघु नाथ ) जिसके साथ मेने ज्यादा काम किया जिसको मेने ज्यादा सेब दिया, पहले तो हमारा काम काफी अच्छा चल रहा था । लेकिन 4 से 5 साल बाद वह पैसे देने में आना कानी करने लगा और उसने मेरी 300 एप्पल बॉक्स के पैसे नही दिए
fraud with farmers पैसे मांगने लगा तो वह ब्लैकमेल करन लगा पहले सेब लाओ फिर पुरानी पेमेंट मिलेगी जिस कारण मजबूरन मुझे उसके पास सेब लेने पड़े , जिस कारण मुझे पुराने कुछ पैसे तो मिल गए लेकिन जो सेब के नए बॉक्स लिए थे उसके कुछ रुपए फस गए जिसका और कुछ पुराने जो कुल मिला कर 1,25000 रुपए होते है । बहुत रिक्वेस्ट करने के बाद भी उसने पैसे नही लौटाए तो मेने सिविल कोर्ट रोहरु में दरख्वास्त लगाई और उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया
fraud with farmers खुद की मेहनत से कमाए रुपये के लिए दर दर की ठोकरे अभी मुकदमा हुए 1 साल से ऊपर हो गया है और उसने 1 भी रुपया नही दिया है । हॉनरेबल कोर्ट में उसने बड़ी ही चालाकी से कोर्ट में बयान दर्ज करवाया की पैसे अभी पेशी के बाद दे देगा लेकिन पेशी के बाद वह भाग गया । जिस वजह से मेने अपने वकील को पूरी बात बताई और हमने दूसरे दिन हॉनरेवल कोर्ट में फिर से एक दरख्वास्त लगाई की वह व्यक्ति बिना पैसे दिए भाग गया ।
fraud with farmers केस कोर्ट में चला है मेरी ही तरह बहुत से लोग है जो इस वजह से जूझ रहे है । अगर बात अपनी नही बागवानों के हितों की करूं तो बागवानों का रुपया अगर कोई नही देता है तो वो कैसे ले सकता है इसका कोई भी प्रावधान सरकार द्वारा नही किया गया है ।
आखिर कैसे मिल जाता है इनको लइसेंस
क्या सरकारी कर्मचारी जो लाइसेंस इश्यू करते है उन द्वारा कोई पैरामीटर रखा हुआ है की कोन व्यक्ति कैपेबल है लाइसेंस के लिए । क्या उस व्यक्ति के पास इतने रिजर्व है जितने का वह व्यापार करता है । अगर कोई व्यक्ति 2 करोड़, 5 करोड़, 50 करोड़ का बागवानों का सेब बेचता है तो क्या उस व्यक्ति के पास उतने करोड़ रिजर्व में है ताकि अगर कभी आड़ती को घटा हो गया या कोई और घटना हो गई तो वो किसानों के खून पसीने की कमाई दे सकें,
fraud with farmers आढ़ती तो अपना कमिशन पहले ही ले लेता है लेकिन पैसा किसका फसता है अंत में किसानो का ही , अगर कोई पैरामीटर नही है तो फिर तो कोई भी व्यक्ति सेब खरीद बेच सकता है ।